खण्डवा। महिला एवं बाल विकास विभाग के घूसखोर कर्मचारियों को लोकायुक्त ट्रेप कार्रवाई के एक सप्ताह के बाद बाल संप्रेक्षण गृह में अटैच कर दिया था। कायदे से इन कर्मचारियों को तत्काल निलंबित कर बर्खास्त करना था।लोकायुक्त डीएसपी द्वारा भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत दोनों कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त का प्रतिवेदन देने के बावजूद दोनों को बाल संप्रेषण गृह में अटैचमेंट कर के रखा गया है।
दो माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी ठोस कार्रवाई का ना होना अन्य अधिकारी/कर्मचारी की लिप्तता का दे रहा है प्रमाण ?-
चर्चा तो यह भी है कि इस पूरे मामले में विभाग के अन्य अधिकारी सभी लिप्त हैं। अधिकारियों की मेहरबानी के चलते दोनों कर्मचारियों का सिर्फ अटैचमेंट किया गया। इस कार्रवाई से इन पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। क्योंकि सोशल वर्कर मनोज दिवाकर बाल संप्रेक्षण गृह का काम पहले भी देखता था। बताया जा रहा है कि महिला बाल विकास विभाग महिला सशक्तिकरण बाल संप्रेक्षण गृह व बाल कल्याण समिति चारों विभागों के लेखा-जोखा सहित लेन-देन पर मनोज दिवाकर की गहरी पकड़ है। विभाग के अधिकारियों को भी मनोज दिवाकर ही चलाता है। इसलिए अधिकारी भी मनोज को बचाने में लगे हुए हैं।
मनोज को प्राप्त है महिला बाल विकास विभाग के उच्च अधिकारियों सहित संचालनालय का संरक्षण-
लोकायुक्त को शिकायत अगस्त माह में राजकुमार साहू व मनोज दिवाकर के नाम से की गई थी परंतु राजकुमार साहू का तबादला होने से रिलीव कर दिया गया था। जिस कारण वह छिंदवाड़ा ट्रांसफर होने के बावजूद भी इस कार्य को पूर्ण रूप से अंजाम दे रहा था। विभागीय सूत्रों के अनुसार इस पूरे मामले में प्रभारी अधिकारी नमिता शिवहरे एवं प्रभारी अधिकारी महिला बाल विकास की मिलीभगत भी काफी हद तक है। मनोज दिवाकर पर अधिकारियों का हाथ है, और चर्चा का विषय यह भी बना हुआ है कि मनोज दिवाकर विभाग के अन्य अधिकारियों की काली करतूतें जानता है। इसलिए उसे बचाने की कोशिश में पूरा विभाग संचालनालय भोपाल तक पुरजोर लगाते हुए नजर आ रहे हैं।
महिला बाल विकास विभाग संचालनालय स्वयं ही शंका के घेरे में
पूर्व से ही विवादों में गिरा खंडवा का महिला बाल विकास विभाग एवं बाल कल्याण समिति कि भ्रष्टाचारी अब इतनी बढ़ गई है अधिकारी कर्मचारी दोषियों पर कोई कार्रवाई करना ही नहीं चाहते हैं। एक दूसरे की काली करतूतो को छुपाने मैं लगा है खंडवा का महिला बाल विकास विभाग एवं बाल कल्याण समिति, यदि ऐसा नहीं है तो फिर लोकायुक्त इंदौर डीएसपी एवम उनकी पूरी टीम के द्वारा रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़े गए महिला बाल विकास विभाग के दो कर्मचारी कंप्यूटर ऑपरेटर संजय जगताप और सोशल वर्कर मनोज दिवाकर पर कोई ठोस कार्रवाई का ना होना अटैचमेंट मात्र जैसी कार्रवाई कर इति श्री कर लेना अब महिला एवम बाल विकास विभाग संचालनालय मध्यप्रदेश शासन भोपाल को शंका के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है।
एक के बाद एक भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं ? –
हाल ही में एक और मामला सामने आया है जिसमे हितग्राही मोनिका श्रीवास ने बताया कि, मनोज दिवाकर के द्वारा मेरे बच्चो के आवेदन भरवाकर रूपये 56 हजार का लाभ जोकि मध्य प्रदेश शासन द्वारा मिलना था , उसमे खातों में गड़बड़ी कर बंदरबाट कर ली है। और बाद में जब बैंक राशि आप्राप्त होने से महिला हितग्राही द्वारा मनोज दिवाकर को संपर्क करने की कोशिश की गई तो मनोज दिवाकर ने महिला को कहां की आप शिकायत दर्ज मत करना में आपके रूपये थोड़े थोड़े करके वापस लौटा दूंगा।
बावजूद इसके नही लौटाने पर महिला हितग्राही विभाग में पहुंच कर शिकायत दर्ज करवाने पहुंची।
इनका कहना है ……
विभाग के अधिकारी पन्नालाल गुप्ता ने बताया कि मोनिका श्रीवास मेडम आई है हमारे पर विभाग में एक शिकायत लेकर , जिसमे जनवरी माह में इन्होंने अपनी बच्चियों का आवेदन जमा किया था। हाल में विभाग में निलंबित हुए बाबू मनोज संजय के द्वारा 28 आवदनो (प्रकरण) जमा हुए थे जिसमे अनियमितता हुई है। जिसमे से एक प्रकरण मोनिका श्रीवास मेडम का भी है , जिसमे हितग्राही के खाते में 56 हजार रूपए डाले और उनसे 56 रू० गलती से डालना बताकर बार बार वापस करने की मांग मनोज दिवाकर द्वारा की जा रही थी। अभी तक लगभग पांच से सात शिकायते अभी विभाग के पास आई है। जिसमे हमने कलेक्टर साहब एसपी साहब को और संचालनालय मध्यप्रदेश शासन को भोपाल भेजा है।